सन 2011 था जब मैं दिल्ली पढ़ने आया,
उस समय एक कमरा लिया , 5000 के करीब था उसका किराया ।
साल दो साल नही पूरे 6 साल वहां गुजारे
पर जब भी किसी को बुलाया मेरे "रूम" पर आना सिर्फ ये कह पाया"।।
सोचा अभी तो कॉलेज का लड़कपन है ,
और मेरे दोस्त यार भी क्या कुछ कम हैं ?
हाँ फिर मैं और बड़ा हो गया....
डिग्री डिप्लोमा तो क्या मेरा मास्टर्स भी खत्म हो गया ।
फिर सोचा क्यों न अब रूम को छोड़ा जाए ,
अपने जिंदगी के रुख़ को "घर" शब्द की ओर मोड़ा जाए।
यही सोचकर मैने जगह को बदल लिया ,
एक कि बजाय अब दो कमरों का किराया दिया ।
पर अब भी मैं उस शब्द को न पा पाया,
अब भी मैने सबको "फ्लैट" पर ही बुलाया घर ना बुला पाया ।
घर तो होता है उसमें रहने वालों से, एक पूरे परिवार से,
ये नही बनता पैसों से, बातों से या सिर्फ सपनो के साकार से...।।
Thursday, 26 July 2018
रूम, फ्लैट और घर
Tuesday, 26 June 2018
चाय
रात खत्म होने को हो
और सुबह की पहली किरण का उजाला हो
थोड़ा सा सन्नाटा , ठंडी हवा हो
और एक चाय का प्याला हो.....
Friday, 6 April 2018
तूफ़ान
ये तो तूफान तेज़ आया है,
बस्तियों को यूं उखाड़ गया।
एक तूफाँ मेरे भीतर भी था,
जो मुझको अंदर से उजाड़ गया।।
Saturday, 3 March 2018
माँ
इससे ज्यादा मुश्किल दुनिया मे कोई काम नही
पर इससे बड़ी उसके लिए उसकी कोई पहचान नही।
रात रात भर जगती है वो खुद की नींद का ज्ञान नही
सच है ये औरत के लिए माँ बनना आसान नही।।
सारी दौलत कम है उसको सारे शौक भी फीके हैं
बच्चा खुश हो वही काम का बाकी सब कसीदे हैं।
अपनी भूख के आगे उसके बच्चे का निवाला है
सब कुछ वहां पर छोटा है जहाँ माँ का हवाला है।।
अपनी पूरी पहचान को यूं भूल पाना आसान नही,
हाँ ये सच है कि इस दुनिया में माँ बनना आसान नही।।
(आदी)
दुनिया की सभी माँओं को समर्पित।।
Tuesday, 21 November 2017
बेपरवाह
बेहतरीन बेपरवाह जिंदगी थी
फिर परवाह न होने की परवाह हो गयी..
उन्मुक्त उड़ान तो अच्छी थी
फिर किसी क़ैद की चिन्ता हो गयी..।।
Saturday, 27 May 2017
तुम याद आये....
घिरी बरखा जो यहाँ
तो तुम याद आये
गिरा सावन जो रिमझिम
तो तुम याद आये..|
जो खुशबू मिली मिट्टी से
तो तुम याद आये
जो गरजे काले मेघा
तो तुम याद आये....||
दूरी भी कहाँ दूर करे तुमसे
याद भी अब आये तो मन बहकाये
ये मूसलाधार भी न प्यास बुझाये
दिल में लगी आग कुछ यूँ मुझे जलाये..|
कि तेरा नाम क्यों बार बार मेरे सामने आये
जो चाहा सबसे ज्यादा भूलना सिर्फ वही याद आये..
अब तो जो आँख भी लगे गलती से
तो सपने में तुम नजर आये.....||
घिरी बरखा जो यहाँ
तो तुम याद आये
गिरा सावन जो रिमझिम
तो तुम याद आये....||
Saturday, 13 May 2017
तड़पती रूह
मेरे अश्कों की तू भी सौगात होगा
शब्द मेरे भी होंगे तू बेबाक होगा..
मेरी मोहब्बत का रंग लगता है फीका तो क्या
वफाओं के आगे मेरीे तू लाज़वाब होगा..||
अँघेरा दूर करने को मुझपर चिराग होगा,
रोशनी तो कम होगी मगर आफ़ताब होगा..
किस्सा लगता रहा हाल-ए-दिल मेरा जो
महफिलों की हर जुबां का वही सरताज़ होगा..||
दिन तो वो भी आयेगा जो मेरे साथ होगा
यादों को संजोया तुझपर भी गुलाब होगा..
मेरी तड़प से नही हूँ खुद मैं रूबरू
दिल में लगी आग की जलन का एहसास होगा..||
मेरे अश्कों की तू भी सौगात होगा
शब्द मेरे भी होंगे तू बेबाक होगा......||
( आदी )
Wednesday, 15 March 2017
सफ़र
तेज़ तेज़ आनन् फानन
हवा को चीरती जा रही है,
लोहे पर लोहा है
कभी धुप कभी छाँव आ रही है।।
ये रेल की रफ़्तार
तेज़ और तेज़ होती जा रही है,
सफ़र अकेले भी काट रहा है
आगे मैं बढ़ रहा हूँ की ज़िन्दगी पीछे जा रही है??
कभी गेंहूँ की लड़ियाँ हैं
कभी सरसों की बहार है,
रफ्तार तो तेज़ है मगर
फिर भी आँखें रुक् जा रही हैं।।
रफ्तार तेज़ होती जा रही है,
रफ्तार तेज़ होती जा रही है।।
पीछे छूट रहें है स्टेशन,
कुछ जाने कुछ अनजाने
तेज़ तेज़ हवा को चीरती जा रही है,
रेल भी ज़िन्दगी सी है .....
बढ़ी जा रही है, बढ़ी जा रही है।।।।
(आदित्य कुमार अवस्थी)
यात्रा के दौरान आते विचार।