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Thursday, 15 August 2019

हवायें

बड़ी ज़ोर से आती है,
मेरे चेहरे से टकराती है,
मेरे बालों को बिखराती है
ये हवा भी ना......
मन को कितना बहकाती है

कभी कुछह खुशबू साथ में लाती है
कभी कुछ यादों को बुलाती है
आनन फानन तेज़ कभी, कभी चूम के जाती है
ये हवा भी ना.....
मन को कितना बहकाती है!!

Sunday, 16 June 2019

हमारे घरोंदे

कैसा अजीब ये वक़्त कैसा बेबाक है
रात भी पूरी खत्म नहीं और सुबह भी होने को बेकरार है,
सुर्ख नहीं हैं पत्ते इन चंद दिखते पेड़ों पर
जबकि मौसम में तो बड़ी ज्वाला की मार है..

प्रकृति ने बेइंतहा कोशिश कर ली है खुद के वजूद को बचाने में,
हमने भी लेकिन पूरा घमासान किया है हर सुंदर संपदा हटाने में,
पूरी तरह बर्बाद कर दिया हमने अपने ही घरोंदों को,   ना प्रश्न करना अब प्राकृतिक आपदाओं के हमें मिटाने में..!!

सब हमारा अपना ही बोया है और अब हम ही इन कांटो को झेलेगे,
हमारे आने वाली पीढ़ी के बच्चे अब कहाँ हरियाली और प्रकृति की गोद मे खेलेंगे??

Saturday, 29 September 2018

सन्नाटो की आवाज में

निकलता हूँ इन गलियों में
दूर तक कोई हमसफर नहीं दिखता
मै होता हूँ और घना सन्नाटा होता है,
मुझे खुद मेरा अस्तित्व नहीं दिखता!!

खोज रहा हूँ कुछ ऐसा मैं
जो शायद कहीं छुप गया है गुमनाम होकर
वो भी आस लगाए बैठा है
मिलूंगा तो सिर्फ चैन, सुकून और आराम खोकर!!

Tuesday, 26 June 2018

चाय

रात खत्म होने को हो
और सुबह की पहली किरण का उजाला हो
थोड़ा सा सन्नाटा , ठंडी हवा हो
और एक चाय का प्याला हो.....

Wednesday, 7 February 2018

बेचैनी

कितना अच्छा होता है बेकरार होने पर भी कहीं खो जाना,

कितना अच्छा होता है बेचैन रात मे भी सो जाना,

यूं तो बेसब्र बेदर्दी भरी है ये जिंदगी..

कितना अच्छा होता है दिल भरने पर बेधड़क रो जाना।।

(आदी)

Monday, 18 December 2017

इश्क़ सरेआम

कुछ इस कदर मैंने खुद को उसके नाम कर दिया
हाथ को पकड़ा उसके और मोहब्बत को सरेआम कर दिया,
मेरा इश्क़ तो एकदम सच्चा था फिर भी
उसने बोला की मैने उसे बदनाम कर दिया....।।


Sunday, 9 July 2017

अंधों का शहर

अंधों का शहर है या आँखों में किरकिरी है
खुली हैं ये ऑंखें या धुएं से घुली हैं......'
रोज़ गुफ्त्त्गु होती है हैवानियत से तुम्हारी,
इंसानियत क्या मुर्दों से तुली है...?

इस मंजर को भी अपना लिया हमने ऐ आदी
हवा ही जोरो की कुछ उलटी चली है......
खून का एक कतरा भी काफी था झकझोर देने को,
शांत कैसे आज जब लाल पूरी ये जमीं है ......?