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Saturday, 29 September 2018

सन्नाटो की आवाज में

निकलता हूँ इन गलियों में
दूर तक कोई हमसफर नहीं दिखता
मै होता हूँ और घना सन्नाटा होता है,
मुझे खुद मेरा अस्तित्व नहीं दिखता!!

खोज रहा हूँ कुछ ऐसा मैं
जो शायद कहीं छुप गया है गुमनाम होकर
वो भी आस लगाए बैठा है
मिलूंगा तो सिर्फ चैन, सुकून और आराम खोकर!!

Saturday, 9 June 2018

रात और ख्याल

ख्याल वो जो सारी रात मेरी नींदों से टकरा रहा था,
कभी मैं सपनों के करीब था कभी सिर्फ सपने सजा रहा था ।
करवटे बदलना कभी तकिये को सीने से लगाना,
अब बस ऐसा करना मेरी रातों का काम हुआ जा रहा था ।।
बस अब छोटी सी हो गयी थी वो लंबी रातें,
और.....
किसी कहानी के बेचैन मोड़ सा मैं जिये जा रहा था,
किसी कहानी के बेचैन मोड़ से मैं जिये जा रहा था।।

Monday, 18 December 2017

इश्क़ सरेआम

कुछ इस कदर मैंने खुद को उसके नाम कर दिया
हाथ को पकड़ा उसके और मोहब्बत को सरेआम कर दिया,
मेरा इश्क़ तो एकदम सच्चा था फिर भी
उसने बोला की मैने उसे बदनाम कर दिया....।।


Monday, 11 December 2017

नासमझ ही अच्छा था....

काश मुझमें ये समझ ही न होती,
मैं तो बस नासमझ ही अच्छा था..
ये दुनिया के कायदे, रीति-रिवाज
झूठे चेहरे, वादों से दूर ही अच्छा था..।।

(आदी)

Tuesday, 21 November 2017

बेपरवाह

बेहतरीन बेपरवाह जिंदगी थी
फिर परवाह न होने की परवाह हो गयी..
उन्मुक्त उड़ान तो अच्छी थी
फिर किसी क़ैद की चिन्ता हो गयी..।।

Sunday, 19 November 2017

ख्वाबों की ओर..

रात अब लम्बी लग रही है
कहीं मैं सो न जाऊं..
इस दुनिया की एक सी भीड़ में
कहीं मैं खो न जाऊं..!!

क्यों भागा जा रहा है सरपट
अब लगता है वक़्त थोड़ा ठहर जाए..
मैं भी पा लूं पहचान को अपनी
जल्दी से अब वो पहर आये.. !!

(आदी)


Friday, 22 September 2017

गहराई




दिल की गहराई भी अब कम रह गयी है ,
इंसानियत तो बस दिखावे की रह गयी है..|
क़त्ल कर देती थी आशिको को जो बिना वार के
वहां अब दिखती बस शिकन रह गयी है ..||
दिल की गहराई भी अब कम रह गयी है....

ख्याल जो आया था उसकी बस चुभन रह गयी है ,
बुझ चुके शोले के भीतर सी अगन रह गयी है..|
टूटे आईने से चकनाचूर हुए थे जो सपने
न भर सकेंगी वो दरारे बस इतनी सी उमर रह गयी है ..||
दिल की गहराई भी अब कम रह गयी है....

(आदी)

Monday, 23 January 2017

खोया इंसान

जाने इस देश को इस जहान् को क्या हो गया..
भीड़ तो इतनी हो गई पर इंसान कहीं खो गया ||
प्रेम, सद्भावना और भाईचारा पानी में बह गया..
'इंसानियत' तो यहाँ बस शब्द् बनकर रह गया ||
अब तो हमारा जमीऱ भी बिल्कुल सो गया..
जाने हमें कब, क्यों और क्या हो गया ??
प्यार कहानियों में सिमटा इंसान स्वार्थी हो गया..
न जाने इंसान कहाँ खो गया, न जाने इंसान कहाँ खो गया..????