Saturday, 29 September 2018

सन्नाटो की आवाज में

निकलता हूँ इन गलियों में
दूर तक कोई हमसफर नहीं दिखता
मै होता हूँ और घना सन्नाटा होता है,
मुझे खुद मेरा अस्तित्व नहीं दिखता!!

खोज रहा हूँ कुछ ऐसा मैं
जो शायद कहीं छुप गया है गुमनाम होकर
वो भी आस लगाए बैठा है
मिलूंगा तो सिर्फ चैन, सुकून और आराम खोकर!!

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