Wednesday, 26 June 2019

यादों की पनाह

कुछ इस कदर इस सफर में मै हँसते हुए सब कुछ गवाउंगा,

गुम होती तेरी यादों की पनाह में फना हो जाऊँगा..!!

(आदी)

Sunday, 16 June 2019

हमारे घरोंदे

कैसा अजीब ये वक़्त कैसा बेबाक है
रात भी पूरी खत्म नहीं और सुबह भी होने को बेकरार है,
सुर्ख नहीं हैं पत्ते इन चंद दिखते पेड़ों पर
जबकि मौसम में तो बड़ी ज्वाला की मार है..

प्रकृति ने बेइंतहा कोशिश कर ली है खुद के वजूद को बचाने में,
हमने भी लेकिन पूरा घमासान किया है हर सुंदर संपदा हटाने में,
पूरी तरह बर्बाद कर दिया हमने अपने ही घरोंदों को,   ना प्रश्न करना अब प्राकृतिक आपदाओं के हमें मिटाने में..!!

सब हमारा अपना ही बोया है और अब हम ही इन कांटो को झेलेगे,
हमारे आने वाली पीढ़ी के बच्चे अब कहाँ हरियाली और प्रकृति की गोद मे खेलेंगे??

Monday, 3 June 2019

बदनसीब

दबाकर आग सीने में एक मुद्दत से फिरता हूँ,
ये जो आजाद कर दूँ तो जलकर खाक हो जाऊं..
बड़ा बदनसीब सा लगता है मेरी दोनों ही मर्ज़ी में,
कि अब राख हो जाऊँ या फिर बर्बाद हो जाऊँ..??