दबाकर आग सीने में एक मुद्दत से फिरता हूँ, ये जो आजाद कर दूँ तो जलकर खाक हो जाऊं.. बड़ा बदनसीब सा लगता है मेरी दोनों ही मर्ज़ी में, कि अब राख हो जाऊँ या फिर बर्बाद हो जाऊँ..??
No comments:
Post a Comment