रिश्ते निभाने के लिए होते हैं, यह कोई रण भूमि नही है जहां अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया जाए। आज के नव युग मे हमारी तकनीक जितनी गतिमान हो रही है हमारा आपसी व्यक्तिगत संचार तथा भावों का आवागमन छीण होता जा रहा।। हम अपने भौतिक व्यक्तित्वों का तो विकास कर रहे परंतु अपनी असल पहचान तथा छवि को घुमिल कर चुके हैं। आज हम चाहते है जब खुद को टटोलना , अपने आंतरिक मस्तिष्क तथा हृदय की गहराई को तो वहां निर्वात के सिवा और कुछ नही और जो कर रहा है बेचैन दिन प्रतिदिन हमारे जीवन को वह तो बाह्य उलझनों का वह बगीचा है जो प्रारम्भ में आकर्षक और मोहक लगता है, जिसमे स्वयं जकड़े पड़े हैं हम क्योंकि बीच मे पहुंचने पर अंधकार व्याप्त है ।।
निकलने का पथ सीधा है क्योंकि निर्माण तो स्वयं हमें ही करना है, आवश्यकता है तो बस प्रारंभ की।। बाहर तो दूर तक प्रकाश है , उतना ही जितना हमारे अंदर भी व्याप्त है बस वह भी ओझल है हमारी दृष्टि से उन जंगलों के कारण.. जिनसे निकास का द्वार हम स्वयं बनाएंगे।।
(आदी)