Tuesday 21 November 2017

बेपरवाह

बेहतरीन बेपरवाह जिंदगी थी
फिर परवाह न होने की परवाह हो गयी..
उन्मुक्त उड़ान तो अच्छी थी
फिर किसी क़ैद की चिन्ता हो गयी..।।

Sunday 19 November 2017

ख्वाबों की ओर..

रात अब लम्बी लग रही है
कहीं मैं सो न जाऊं..
इस दुनिया की एक सी भीड़ में
कहीं मैं खो न जाऊं..!!

क्यों भागा जा रहा है सरपट
अब लगता है वक़्त थोड़ा ठहर जाए..
मैं भी पा लूं पहचान को अपनी
जल्दी से अब वो पहर आये.. !!

(आदी)