कई बार वो मुझतक पहुँची ख्वाबो की तरह,
महसूस किया आँधी में जलते चिरागो की तरह |
तड़पती है रूह जैसे मिलने को शरीर से,
सोचा उसे मैनें उन इरादों की तरह |
नही चाहता था जागना जब सपनो मे तुम थी,
मदहोश खुशबू की तरह करीब तुम थी |
पर अचानक नीद खुली और तब जाना,
सच नही वह सिर्फ प्रतिविम्ब थी |
आज फिर जागा तो मैं रोज की तरह,
पर नही टूटा था ख्वाब हर रोज की तरह |
सामने उसे हकीकत मे पाया,
जाना प्यासे की तड़प को पानी की खोज की तरह |
आज भी शब्दों को अन्दर ही राख कर दिया,
सारी दिल की आग को भाप कर दिया |
नही सुना पाया तुम्हे दास्तान ए दिल,
और अहसासों को भी अपने सुपुर्द ए खाक कर दिया |
#आदी#
(आदित्य कुमार अवस्थी)
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