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Monday, 14 August 2017

आज़ादी की दास्तान

आज़ादी की दास्तान

कहीं नयी कहीं पुरानी लगती है
कभी खून से लिखी कहानी लगती है ,
लब तो आज़ाद हो गए पर
कभी आज़ादी बेमानी सी लगती है..||
जब निकला चौराहे पर तो जकड़ती जवानी को देखा
गली के हर कोने पर मैंने मरते बचपन की कहानी को देखा ,
मायूस आँखों के भीतर तो ये पथराये पानी सी लगती है
कभी आज़ाद फिरता हूँ कभी आज़ादी बेमानी सी लगती है ..||
कभी जात कभी धर्म में इसे सिकुड़ते देखा
गुनाहों के दरबार में कभी अकड़ते देखा ,
कभी सोच से परे कभी उसकी ही गुलामी सी लगती है
कभी मै आज़ाद लगता हूँ कभी आज़ादी बेमानी सी लगती है ..||
फिर भी पाता हूँ अनेको रोशन चिरागों को
सिमटते अँधेरे और रंगीन नजारों को ,
नफरतो के बीच मोहब्बत की नुमाइश भी लगती है
आज़ादी तो कुछ ऐसी है जो सबको ही प्यारी लगती है..||
(आदित्य कुमार अवस्थी )
सभी को भारतीय स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ ||