Tuesday, 1 November 2016

उड़ान

जाने कैसी अन्जानी ये बात है,
फैली दूर तक काली घनी रात है....
बचना था जिनको वो घरों में चले गये,
मेरे लिये तो ये तेज बरसात है||

दौड़ कर पकड़ ली सीढियाँ,
छत तक जिनको था जाना.....
मुझे तो हौसलों की उड़ान भरनी है,
क्यों कि यह आसमान है मुझको पाना....||

(आदी)

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