जिन्दगी एक सवाल बनकर सामने आई,
पर सवाल इतना खूबसूरत था की जवाब की चिन्ता ही न रही |
लहरों मे उतर गया न की परवाह गहराई की,
बहना इतना अच्छा लगा की पार जाने की चिन्ता ही न रही|
राहें थीं तो अन्जान एकदम,
पर चलना इतना अच्छा लगा की मन्जिल की चिन्ता ही न रही|
अब बस इतनी सी है तमन्ना,
बढ़ता रहूँ अागे इन रास्तों पर, चाहें हों ये गलत या हों ये सही|
(आदित्य कुमार अवस्थी)
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