कारगिल विजय को सत्रह वर्ष पूर्ण हुये | पूरे देश में कारगिल विजय की सत्रहवीं वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई गई.. एक बार फिर से शहीदों को याद तथा उनका नमन किया गया| कुछ नवजवानों ने तो देश के लिये मर मिटने तथा न्योछावर होने की कसम तक खा ली, ये बात और है कि वो जुनून छणिक मात्र के लिये था| सारी देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता दिन बीतने के साथ ही घुमिल हो गई.. पीछे कुछ बच गया तो मात्र बड़ी बड़ी बातें और रंग बिरंगे चित्र एवं कृतियाँ जो हमारे उपभोक्तावादी समाज के लोगों ने खुद को महान तथा राष्ट्रवादी घोषित करने के लिये विभिन्न स्थानों पर साझा की थी|
क्या यही है सही मायने में राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति ????? यह प्रश्न जितना सीधा और सरल है इसका उत्तर उतना ही जटिल क्योंकि लोगों के लिये राष्ट्रवाद के अलग अलग मायने हैं | आज सम्प्रदायवाद और धार्मिकता , राष्ट्रीयता से कहीं ऊपर है.. और इसका उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं |
जिन्हे हमने उस पद तक पहुँचाया कि राजनीतिज्ञ नेता बनकर वो समाज एवं इंसानियत के भले के लिये सही निर्णय लेंगे और मार्गदर्शन करेंगे, उन्ही ने अपने स्वार्थ एवं लोभ के लिये समाज के विभिन्न वर्गों में आपसी फूट डलवाई और हमें लड़वाया | लोग लड़ते मिटते रहे और नेता एवं धर्म के ठेकेदार तमाशा देखते रहे| उन्होने अपनी जड़े तो मजबूत कर लीं परन्तु देश और समाज खोख़ला हो गया.......
अब भी न जागे तो फिर बाद में जागने से लाभ नही, क्योंकि स्थिति गम्भीर है| समझ जाओ, जाग जाओ और मान जाओ.... इंसानियत और राष्ट्रप्रेम से बड़ा कोई धर्म नही | अगर दिल में प्रेम नही तो न ही दुआ कुबूल होगी न प्रार्थना स्वीकार होगी|
इंसानियत की जीत और आपसी एकता ही असली जीत है.....
" मज़हब नही सिखाता, आपस में बैर रखना...
हिन्दी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तां हमारा "
जय हिन्द जय भारत
( #आदित्य_कुमार_अवस्थी )